आंखो मे नशा छाया है किसी के प्यार का
दुख है
पुरानी प्रेमिका के इंकार का
दिन पड़ गयी है छोटी
राते हो गयी है लंबी
क्यूँ
क्यूंकि सपना देखा है उसने
किसी के प्रेम के इजहार का
लड़ू भी फूटे हैं , मन मे आँधी भी आई है
ना जाने कहाँ कहाँ कौन सी तरंगो ने उठान पायी है
ज़िंदगी की राह था वो खोजने निकला
ये कमबख्त ना जाने
कहाँ कहाँ पर है फिसला
मैं भी देख रहा हूँ उसको
और कई लोग भी
आओ तुम भी ये तमाशा देखो
कुछ नहीं तो
कुछ आहें तुम भी फेकों ।
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