उन आंखो की भाषा
उनमे छिपे ना जाने कितने ही सपने
देखो तो ये खाली खाली सा
सूना सा लगता है
अंदर झाँको तो ये
भरा भरा सा लगता है
शून्य मे अटके विचार
विलुप्त आसमान मे देखता
वो निर्विकार चेहरा
देखो तो पाओगे
उनमे भी तुम कितने ही ख्वाब
जेहन मे गूँजता बस एक ही सवाल
हाँ ,
तो क्या ये आंखे भी बोलती है ।
हाँ हाँ सूखा सूखा और नमी का
कुछ अजीब ही मिश्रण है
वो पथराई हुई आंखे, ऐसा ही कुछ
शायद देखा था
ये कितना सूखा है
हसने लगी थी वो
जब मैंने उससे ये पूछा था
चेहरे पर तो हंसी
लेकिन दिल मे ना जाने उसके
किस ज्वलन का ज्वार था
उस बढ़ते हाथ को कौन भूलेगा
कौन उसके हृदय को इतने करीब से छु लेगा ।
लेकिन आज वो हंसी भी गायब है
और एक अजीब सा ही कौतूहल है
समय ने बदलाव सा ले लिया है ।
अभी तो कुछ पल भी ना बीता था
जिंदादिली से वो जीवन को जीता भी ना था ।
क्यूँ बदल गया है सब कुछ
आज मेरी भाषा लोग पढ़ते हैं
लेकिन क्या वो इसे समझते भी हैं
संकीर्ण और Limited Pattern मे
सोच ही बदल दिया है।
बातों की भाषा , भावों की भाषा
पुनः फिर
उन आंखो की भाषा
कभी कभी ये भाषा भी
अजीब ही होती है ।
मिलने का क्रम भी
बिछड्ने से ही शुरू होता है
अच्छा ही है , समय इतना
कहाँ ही होता है ।
हँसना ही छुट गया है
लेकिन ज़िंदगी के हर मोड़ पर
फंसना भी छुट गया है ।
मुस्कुराहट भी रूठ गयी है
उसकी हर आहट भी पीछे छुट गयी है ।
loved it :)
ReplyDeletedil ko chu gayi
depicts my life :)